Monday 20 August 2012

मोबाइल पर ज्यादा गुफ्तगू खतरनाक


मेरठ। मोबाइल तरंगों के दुष्चक्र में फंसकर जीवन असाध्य बीमारियों की ओर मुखातिब है। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से पर्यावरण आहत है। जीव जंतुओं की जेनेटिक बदल रही है। मेरठ की आरटीआइ से खुलासा हुआ कि खतरे से लबरेज ये तरंगे मनुष्य में पर्किसन जैसी बीमारी भी पैदा कर सकती हैं। बच्चों एवं किशोरों में ब्रेन कैंसर की संभावनाएं चार गुना ज्यादा दर्ज हुई हैं। मस्तिष्क में न्यूरोन्स खत्म होने से पार्किंसन व डिमेंसिया की बीमारी हो सकती है। डीएनए डैमेज का भी खतरा है।
20 मिनट से अधिक बात खतरा
पर्यावरण मंत्रालय ने डा. असद रहमानी के नेतृत्व में तरंगों पर शोध करने के लिए टीम गठित की। पता चला कि 20 मिनट तक बातचीत करने पर कान की ग्रंथियों का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। सेल टावर से 50 से 300 मीटर तक के दायरे में ज्यादा मारक प्रभाव दर्ज किए गए। आबादी पर तरंगों का भारी लोड भारत में टावरों से 9 वाट प्रति मीटर वर्ग की ताकत से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों का उत्सर्जन हो रहा है, जबकि रूस, बुल्गारिया, हंगरी में 0.02 वाट प्रति मीटर, इटली, इजरायल में 0.1 वाट, चीन में 0.4 वाट प्रति मीटर वर्ग है, जो स्वास्थ्य के लिए अपेक्षाकृत कम खतरनाक है।
भारत के दूरसंचार मंत्रालय ने सितंबर माह तक उत्सर्जन की क्षमता 0.9 वाट प्रति मीटर वर्ग सीमित रखने के लिए कहा है। ये कहते हैं वैज्ञानिक चौ. चरण सिंह विवि के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. एसके यादव ने कहा कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से हृदय रोग, ब्रेन कैंसर, मानसिक अवसाद एवं पार्किंसन व हार्मोनल डिसआर्डर तक हो सकता है। पैंट के जेब में रखने से नपुंसकता भी हो सकती है। वहीं, पर्यावरण मंत्रालय की डीआइजी प्रकृति श्रीवास्तव ने बताया कि पर्यावरण पर तरंगों के घातक प्रभावों की पूरी रिपोर्ट केंद्र को सौंपी गई है, जिसमें रेडिएशन की ताकत 0.9 वाट प्रति मीटर वर्ग से कम रखने की सिफारिश की गई है।

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